Saturday, January 18, 2014

तकनीकी क्रांति के जनक

By : मनीष श्रीवास्तव ( फ्रीलांसर )

वर्तमान में हम तकनीकी क्रांति के दौर में जी रहे हैं। तकनीकी अविष्कारों ने मानव समाज को नये आयाम दिये हैं। इन अविष्कारों के बूते ही आज हम सारे कार्य इतनी सुलभता से कर पा रहे हैं। इन सभी तकनीकी अविष्कारों में से प्रमुख हैं- वल्र्ड वाइड वेब, माउस, फेसबुक, एसएमएस, गूगल। ये वे तकनीकी सुविधायें हैं जो मानव समुदाय के जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। इस आलेख में हम आपसे ऐसी ही तकनीकों के जन्म और जन्मदाताओं के बारे में सिलसिलेवार चर्चा करने जा रहे हैं जिन्होंने मानव जगत को पूरी तरह से बदल कर रख दिया।

• www - world wide web

आज हम इंटरनेट पर जिस विपुल सामग्री को पढ़ पा रहे हैं इस सभी का श्रेय सिर्फ एक व्यकित को जाता है- वह है टिम बर्नर्स ली। इंटरनेट के विकास के बाद भी आज जिस रूप में हम इसका इस्तेमाल कर रहे हैं वह सब टिम बर्नर्स ली की वजह से ही संभव हो पाया है। ली world wide web (www) नाम की ऐसी तकनीक को जन्म दिया, जिसमें विश्वव्यापी स्तर पर डिजिटल तकनीकी रूप में मौजूद दस्तावेज एक-दूसरे से जुड़ सकें। बि्रटिश इंजीनियर और कम्प्यूटर वैज्ञानिक बर्नर्स ली ने मार्च 1989 में पहली बार वल्र्ड वाइड वेब का प्रपोजल तैयार किया था। दो वर्षों की सतत प्रक्रिया के बाद 6 अगस्त 1991 को पहली वेबसाइट आनलाइन हुर्इ, जिसने बेहद प्रसिद्धि पार्इ। लोकप्रियता को देखते हुए ली में भी उत्साह का संचार हुआ और उन्होंने 1992 में फोटो अपलोड की। 30 अप्रैल 1993 को यूरोपियन रिसर्च आर्गेनाइजेशन सर्न ने वल्र्ड वाइड वेब को इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए मुफ्त सेवा घोषित कर दी। लेकिन वल्र्ड वाइड वेब को अपार लोकप्रियता मौजेक वेब ब्राउजर के माध्यम से मिली। इस ग्राफिकल वेब ब्राउजर को इलिनाइस यूनिवर्सिटी के नेशनल सेंटर फार सुपर कम्प्यूटिंग एप्लीकेशन्स ने विकसित किया था। इस तरह से डिजिटल कंटेट के सारे दस्तावेज एक-दूसरे से जुड़े सके।

• Google

सबसे पहला सर्च इंजन 'आर्ची के नाम से जाना गया था। 'आर्ची सर्च इंजनू world wide web को लेकर काफी लोकप्रिय हुआ था क्योंकि यहू www की इंडेकिसंग बेहतर तरीके से करता था, जिससे इंटरनेट पर कोर्इ भी सामग्री ढूंढने में काफी मदद मिलती थी। लेकिन इंटरनेट के महासागर में किसी भी विषय-वस्तु को सरलता और सटीकता से ढूंढकर सर्च इंजन इतिहास का प्रभावी नाम बना 'गूगल। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया में पीएच डी के दो छात्र लैरी पेज और सर्जी बि्रन ने मिलकर 1996 में एक रिसर्च परियोजना के दौरान 'गूगल नाम के सर्च इंजन की आधारशिला रखी थी। दोनों ने अपने सर्च इंजन में वेब पेजों की गिनती, वेबसाइट की प्रासंगिकता तथा उस पेज की प्रसिद्धि को किसी भी विषय सामग्री को खोजने का आधार बनाया। शुरूआत में गूगल का नाम 'बैकरल था क्योंकि यह पिछले लिंक्स के आधार पर वेबसाइट की वरीयता तैयार करता था। बाद में इसे गणित के  Googol से लिया गया। गूगोल गणित की बहुत बड़ी संख्या को कहते हैं। जिसमें एक अंक के आगे सौ शून्य होते हैं। इसलिए पेज और बि्रन ने इसकी वर्तनी में थोड़ा सुधारकर इसे google नाम दिया। जिस सर्च इंजन में अनगिनत जानकारियों को बेहद ही सटीकता, तेजी ओर समग्रता से पाया जा सके। शुरूआती दिनों में गूगल स्टैनफोर्ड विश्वविधालय की वेबसाइट के अधीन google.stayford.edu  नामक डोमेन से चला करता था। 15 सितम्बर 1997 को गूगल का डोमेन नेम पंजीकृत हुआ, जिसके बाद औपचारिक रूप से 4 सितम्बर 1998 को इसे एक निजी कंपनी के रूप में स्थापित किया गया। इस तरह कंपनी की विधिवत शुरूआत हुर्इ। आज दो छात्रों द्वारा शुरू की गर्इ यही कंपनी दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड में गिनी जाती है। अरबों रूपयों का निवेश दुनिया भर से कंपनी में किया गया है। वर्तमान में गूगल इंटरनेट सर्च, क्लाउड कम्प्यूटिंग और विज्ञापन कारोबर आदि क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। इसी तरह तकनीकी क्षेत्र से जुड़ी और भी कर्इ कंपनियां हैं जिन्होंने हमारे दैनिक क्रियाकलापों में अपनी विशेष जगह बना ली है या कहें कि वे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। उनमें से कुछ के नाम हैं- एप्पल, ब्लैकबेरी, सोनी, एमपी-3, डाल्बी डिजिटल साउंड आदि। फिर भी अभी तो यह तकनीकी दुनिया का प्रारंभ है। अचंभित करने वाला भविष्य अभी बाकी है जो हम सभी का परिचय ऐसी तकनीकों से कराने वाला है जिसकी हम अभी तक कल्पना भी नहीं कर पाए हैं।

•    फेसबुक - मार्क जुकेरबर्ग

इंटरनेट ने तो सिर्फ सूचनाएँ, टेक्सट सामग्री डिजिटल कंटेंट के रूप में उपलब्ध करार्इ। लेकिन इंटरनेट के माध्यम से विश्व स्तर पर लोगों को जोड़ने का अदभुत काम किया मार्क जुकेरबर्ग ने। इस इंटरनेट उधमी ने ऐसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का निर्माण किया जिसने लोगों को इंटरनेट पर भावनाओं तथा विचार रखने का अवसर प्रदान किया। मार्क जुकेरबर्ग ने इसे नाम दिया 'फेसबुक। यधपि इससे पहले भी सोशल नेटवर्किंग साइट चलन में रहीं लेकिन जितनी बेहतर प्रतिक्रिया 'फेसबुक को मिली उतनी किसी और को नहीं मिल पार्इ। मार्क जुकेरबर्ग ने फेसबुक की स्थापना 4 फरवरी 2004 को की थी। इसका विचार उन्हें स्कूल, कालेजों में छपने वाली निर्देशिकाओं से आया। उन्होंने इसकी स्थापना डसिटन मोस्कोटिज, एंडुर्दो सवेरिन और क्रिस हुग्हेज के साथ मिलकर की थी। जुकेरबर्ग बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र रहे। उन्होंने तब से प्रोग्रामिंग शुरू कर दी थी जब वह मिडिल स्कूल में थे। जुकेरबर्ग ने एक सिनाटस संगीत वादक बनाया था जो सुनने वाले की आदतों को सीखने के लिए कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल करता था। आज 'फेसबुक इतनी लोकप्रिय है कि इसमें पंजीकृत सदस्यों की संख्या करोड़ों में है। जुकेरबर्ग को फेसबुक के लिए 2010 में टाइम पत्रिका द्वारा पर्सन आफ द र्इयर भी चुना जा चुका है। 2010 में जुकेरबर्ग पर 'द सोशल नेटवर्किंग नाम से फिल्म का निर्माण भी हो चुका है।

•   माउस

कम्प्यूटर का अभिन्न हिस्सा बन चुके माउस के अविष्कार का श्रेय अमेरिका के डगलस एंगेलबार्ट को जाता है। उन्होंने पहला माउस 1960 में लकड़ी का बनाया था। इस लकड़ी के माउस में धातु के दो पहियों को लगाया गया था। इसके बाद एंगेलबार्ट ने इसमें काफी सुधार किया और इस आइडिये को सार्वजनिक रूप से 1968 में सैन फ्रांसिस्को में प्रदर्शित किया। उस समय तो सारी दुनिया इतने छोटे से उपकरण से कम्प्यूटर को नियंत्रित होता देखकर हैरान थी। एंगेलबार्ट का जन्म 30 जनवरी 1925 को हुआ था। उन्हें हमेशा इस बात में दिलचस्पी रही कि कम्प्यूटर इंसानी ज्ञान को बढ़ाने में अपनी क्या भूमिका अदा कर सकता है। इसी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण आपने स्टैनफोर्ड शोध संस्थान में शोध भी किया। अपनी सेवाओं के लिये आपको 1997 में लेमेलसन एमआर्इटी पुरस्कार और 2000 में पर्सनल कम्प्यूटर की बुनियाद तैयार करने के लिये नेशनल मेडल फार टेक्नालाजी से भी सम्मानित किया गया।

•    एसएमएस - शार्ट मेसेजिंग सर्विस

पहले दूरदराज इलाकों तक अपनी बात पहुँचाने के लिये चिटिठयां भेजी जाती थीं जिसमें काफी समय नष्ट होता था। लेकिन तकनीक के विकास ने इसे सरल कर दिया। टेलीग्राम मशीन के अविष्कार ने संदेशों को शीघ्रता से पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ। लेकिन यह माध्यम काफी महँगा था। इसके बाद तकनीकी क्षेत्र में उत्तरोत्तर विकास होते गये और हमें मिली एक ऐसा सेवा जिसने सरलता से, किफायती दरों पर शीघ्रता से संदेश पहुँचाने में न सिर्फ अभूतपूर्व भूमिका निभार्इ है। बलिक संदेश जगत की दुनिया ही बदल कर रख दी। इसका नाम है एसएमएस- शार्ट मेसेजिंग सर्विस। इस सुविधा का अविष्कार फिनलैंड के दूरसंचार इंजीनियर माटी मैकोनेन ने किया था। मैकोनेन जीएसएम (ग्लोबल सिस्टम फार मोबाइल कम्यूनिकेशन्स) तकनीक को विकसित करने का प्रयास कर रहे थे। इसी समय इनके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न ऐसी तकनीक र्इजाद की जाए जिससे सरलता व शीघ्रता से लोग अपने विचार एक-दूसरे को भेज सकें। इसी विचार के साथ जन्म हुआ एसएमएस का। पहला एसएमएस संदेश सन 1992 में एक पर्सनल कम्प्यूटर से वोडाफोन के मोबाइल फोन पर भेजा गया था। इस तरह के संदेशों से एक अनोखी दुनिया की शुरूआत हुर्इ जो आज विश्वव्यापी स्तर पर लोगों की भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बन गर्इ है।

मनीष श्रीवास्तव
फ्रीलांसर

E-mail : mshrivastava147@gmail.com

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