चाह गयी चिंता
मिटी मन हुआ
बेपरवाह
जिसको कुछ ना
चाहिए वे साहिब
के शाह
रहिमन वे नर
मर चुके जो
कहीँ मांगन जाई
उन्ते पहले वो
मुए जिन मुख
निकसत नाह
रहिमन धागा प्रेम
का, मत तोड़ो
चटकाए
टूटे से फिर
ना जुडे, जुडे
गाँठ पर जाये।
तरुवर फल नही
खात है, सरोवर
पीवत ना पान
रहिमन कही पर
काज हित, सम्पत्ति
सुचाही सुजान
* * *
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