Sunday, November 25, 2012

रहीम के दोहे


चाह गयी चिंता मिटी मन हुआ बेपरवाह
जिसको कुछ ना चाहिए वे साहिब के शाह

रहिमन वे नर मर चुके जो कहीँ मांगन जाई
उन्ते पहले वो मुए जिन मुख निकसत नाह

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाए
टूटे से फिर ना जुडे, जुडे गाँठ पर जाये।

तरुवर फल नही खात है, सरोवर पीवत ना पान
रहिमन कही पर काज हित, सम्पत्ति सुचाही सुजान

* * *


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