भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित
महतारी
मुनि
मन
हारी
अद्भुत
रूप
बिचारी
..
लोचन
अभिरामा
तनु
घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन
वनमाला
नयन
बिसाला
सोभासिन्धु खरारी ..
कह
दुइ
कर
जोरी
अस्तुति
तोरी
केहि
बिधि
करौं
अनंता
.
माया
गुन
ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..
करुना
सुख
सागर
सब
गुन
आगर
जेहि
गावहिं
श्रुति
संता
.
सो
मम
हित
लागी
जन
अनुरागी
भयौ
प्रकट
श्रीकंता ..
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .
मम
उर
सो
बासी
यह
उपहासी
सुनत
धीर
मति
थिर
न
रहै
..
उपजा
जब
ग्याना
प्रभु
मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि
कथा
सुहाई
मातु
बुझाई
जेहि
प्रकार
सुत
प्रेम
लहै
..
माता
पुनि
बोली
सो
मति
डोली
तजहु
तात
यह
रूपा
.
कीजे
सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..
सुनि
बचन
सुजाना
रोदन
ठाना
होइ
बालक
सुरभूपा
.
यह
चरित
जे
गावहि
हरिपद
पावहि
ते
न
परहिं
भवकूपा
..
बिप्र
धेनु
सुर
संत
हित
लीन्ह
मनुज
अवतार
.
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